Tuesday, October 7, 2008

SatyaNarayan Katha

SatyaNarayan Katha

श्री सतनारायण स्वामी जि कथा

विरत लाय सामग्री

चार केवरे जा थम्बा , नारियल , अम्बा जा पन्ना , श्री सतनारायण स्वामी जि मूर्ती , लोटो , पंचामृत -( khand, dudh, ghee, makhi,& tulsi ja panna), कच्चा चावर , हिक जनेऊ , कनका , कपाह, अगरबतियूं , गुलाब जा गुल , हिक दियो , प्रसाद सवा सेर -(yani ghee, kanka jo ato, & khand) जो प्रसाद थे, पताषा , मेवों , कालो , पान सुपारी , तुलसी जा पन्ना, पंजा रतन, कपूर .

वृत्त रखन जि विधि

वृत्त रखन वारो पूर्णमासी , उमास , एकादशी या संक्रांत जे दिन , जदहिं श्रद्धा थिए तदहं , पहिरन जेके सफा करे , केवरे जा थम्बा खोदे , सुके आते जो मंडप ठाये , नवां ग्रहण एन बयां देवताओं जे नाले पूजा करे. श्री सतनारायण स्वामी जि मूर्ती अगयां रखी नमस्कार करे, पोएय गणेश एन सूरज आदि नवं ग्रह जी पूजा करे श्री सतनारायण स्वामी जो ध्यान धरे - " हे श्री सतनारायण स्वामी, सारे जगत जो तू मालिक आहीं - हे दुख बंजन असंजा पाप नाश कर एन मन जि कामना पुरी कर". पोए आन्च्मानी भरे , श्री सतनारायण स्वामी जे चरनन ते विझी चावी त " हे सतनारायण स्वामी हिन जल के ग्रहन करे शांति देः, असांजी तोखे वारंवार नमस्कार आहे ." बि आन्च्मनी भरे अग्याँ छ्दे चवे त "हे कृपानिधान , हि अरक तवां ग्रहन कर्यो , असांजी तोखे नमस्कार आहे " वारी टी आन्च्मनी भरे अगे वान्गुर अजय अग्याँ छ्दे चवे त "हे पुर्शोतम ! हे दीनदयाल ! तू हीय पंचाम्रत कबूल कर". पोए कपरा पहिराहीं , उन वक़्त हथ जोरे चवे त "हे सत्यनारायण स्वामी! , तविन राजी थी ही जनयो कबूल कर्यो !" तिलक दे अगर्बतियूं जलाई चवे " हे टिन्ही लोकन जा नाथ, ही शयूं तू अंगीकार कर." पोए श्री सतनारायण स्वामी जे अग्याँ दियो बारे , फल प्रसाद दाख्शिना अग्याँ रखी चावी त "हे स्वामी घी जो बनयल ही प्रसाद तविन स्वीकार कर्यो." पोए पान सुपारी एन एलैची अग्याँ रखी हथ जोरे नमस्कार करे त "हे प्रभु , जगत अधर म जेके शयूं तवां जे अग्याँ रख्यूं आहिन से अंगीकार कर! मुख पूजा में का भूल-चुका थीहुजे हे बक्षन्हर तू बक्श . मिंजी तोए अग्याँ हरदम नमस्कार आहे! तू मंजा कष्ट नाश कर एन मन इच्छा पूर्ण कंडे "

अध्याय पहिरियों

कहीं समय हिकरे दिंह नेमीशरान्य तीर्थ ते सौनिक आदि 88 हज़ार ऋषि पाण मे गदजी पुरान जे रेयाचिंदर श्री सुतजी महाराज खां पुचन लगा त "हे मुनीश्वर ! विरत जे रखन करे कहिरो फल तोह प्राप्त थिए एन उहो कहिरो विरत आहें जहँ जे रखन सान संसार जा सभ कष्ट नाश थी वनंथा एन मनोकामना पूर्ण थिए थी - सो हे महामुनि - तविन कृपा करे असान्खे सभ वर्णन करे बुधायो ."

श्री सुतजी महाराज सभिनिं जि अहिरी इच्छा दिसि , प्रेम में भरजी चवन लगो त "हे ऋषयो - हिकरे दिंह श्री विष्णु भगवान खान जेको नारद मुनि पुच्यो हो एन जेका वरंदी खेस श्री विष्णु भगवन दिनी हुई सा कथा मा तवां खे बुदायाँ तो , तविन ध्यान देई बुदो "

हिकरे दिंह नारद मुनि संसारी मानूं जे कल्याण वास्ते घनेही लोक घुमंदो फिरंदो आखिर अच्ची मृत्यूं लोक में आयो . मृत्यूं लोक जे मानूं खे तहिरण तहिरण किस्म्जे दुखन में दुखी दिसि एन अनेक जनम में जमंदो मरंदो दिसी एन मानूं खे पापं जे करे दुःख भोगिन्दो दिसी , दया आणे विचार करन लगो तो हिनन वेचारण जो मोक्ष कियं थिए एन कियं हिन दुखी रूपी दर्याँ मान लंघे पार पवां . इहो विचार करे नारद मुनि वीना वजाइन्दो , हरी गुन गाईन्दो , श्री विष्णु भगवान सां मिलन लाय वैकुण्ठ हल्यो . नारद मुनि वैकुण्ठ में अची , श्री विष्णु भगवान जो दर्शन करे प्रसंचित थी हथ जोरे वेनती करन लगो "हे कमलापति हे लक्ष्मीनाथ तू बे-अंत आहीं . तू माया खा रहत आहिं, श्रिष्टि हरता -करता आहिं . हे देवन जा देव , छत्र भुज धारी . तू भक्तन जी आप्रातरन लाय सर्व शक्तिवान आहिं . सो हे तिन्ही लोकन जा नाथ ! तोखे मिंजी वारों वार नमस्कार आहे !!!"

जदहीं नारद मुनि श्री विष्णु भगवान जि अहिरिं तहरा प्रशंशा करे रहियो हो , तदहि श्री विष्णु भगवान प्रसन्न थी नारद मुनि खे चवन लगो "हे मुनीश्वर ! तू कहिरी मनो कमाना रखी हेडो पंध करे आयो आहिं. मान तो ते सदाही प्रसन्न आयां . तिन्जी जेका मन जि कामना हुजे सा बुधाय पुरी करयां ."

नारद मुनि श्री विष्णु भगवान जा इहे मिठा वचन बुधी प्रसन्न थी हथ बधी वेनती करन लगो " हे भगवान मू घनाही लोक घुमी दिथा मगर मृत्यु लोक जहिरो हाल मू किथे ब कोन दिथो आहे. वेचारा मनुष्य तहिरा तहिरा किस्म जे दुख एन कष्ट भोगे रह्या आहिं . केत्रा नीच जुनियुं मे जनम वाथी पाप करे दुखी थी रहिया आहिं . सो हे दयालू !! हाने कृपा करे को अहिरो सवलो उपाय बुदायो जहिंजेय करन सा उन्हं जा कष्ट दूर थी वनन ."

श्री विष्णु भगवान नारद मुनि जा इह प्रेम भर्य वचन बुधि, चवन लगो "हे नारद मुनि , तोखे शाबास हुजे , दुखी मनुष्य्न जे कल्याण लाय तो जेको सवाल कयो आहे तहीं लाय मुखे दाढ़ी खुशी प्राप्त थी आहे . हाने मा तोखे हिक अहिरो सवलो उपाय बुदायो तोह जहिंजे करन सा दुखी मनुष्य अनेक दुखन खां छुटी सुख खे प्राप्त थीन्दा , सो तू ध्यान देई बुध .

"वदन फलन जो दीनदर , मन जि कामना खे पुरी करन वारो हिक्रो महा पवित्र विर्त आहे जहिंजे रखन जो नमूनों मु अज ताई कहिंकेय कोण बुदायो आहे . हे नारद मुनि इहो विर्त सूरज जे देवताओं खे मिलन दुर्लभ आहे , सो तुंजी अहिरी परोपकार एन प्रेम खे दिसी बुधायातो . इहो विर्त श्री सतनारायण स्वामी जो आहे जहिंजेय रखन सा दुखियं जा दुख नाश थी वननथा , अन्न धन जो वाधारो थिए तो एन संतान जो सुख पाये तो ."

श्री विष्णु भगवान जा इहे वचन बुधि नारद मुनि हदी बधी पुछं लगो त "हे कृपानिधान इन्ह विर्त रखन जि विधि कहिरी आहे एन फल कहिरो आहे एन कहिरे दिन इहो महा पवित्र विर्त रखजेय , सो कृपा करे सभ बुदायो ."नारद मुनि जा इहे वचन बुधि श्री विष्णु भगवान चवन लगो "हे नारद , दुःख सुख खे नाश करन वारो एन वंश खे वधायन वारो जेको महा पवित्र विर्त आहे , सो पूर्णमासी , उमास या एकादशी जे दींह जदहिं श्रद्धा थिए तदहि रखी सगजे तो . विर्त जे दींह शाम पहिन्जे कुटुंब सुधो सुशील ब्रह्मण खे घुराहेय श्री सत्यनारायण स्वामी जि पूजा करे . हिक मोदक सवा सेर जो या सवा पंज सेर जे अटे जो , खंड जो या गुर विझी ठाये , उन में कवर जि फरियूं विझी रखे . पोए श्रद्धा सा श्री सत्यनारायण स्वामी जि कथा बुधि , आरती करे , ब्रह्मण खे धन दे , भोजन कराये , पोए कथा बुधन जेके आया हुजं तिन्ही सभिनीखे तयार कयल मोदक मा प्रसाद दे पोए पाना विर्त छोरे . अहिरी तर्हन विर्त रखन करे मनुष्य्न खे वदो फल मिलंदो एन मन जि कामना पुरी थीन्दी "

इथ श्री सिकंद प्राण जे रेवा खंड में श्री सत्यनारायण स्वामी जि कथा जो पहिरों अध्याय समाप्त थियो . सभई बोलो श्री सत्यनारायण स्वामी की जय , राजा राम चंद्र की जय , मुरली मनोहर कृष्ण भगवान की जय , सभी देवी देवताओं की जय .

अध्याय ब्यो

श्री सुतजी महाराज , सौनिक आदि ऋषयो खे चवन लगो - हे ऋषयो - श्री विष्णु भगवान नारद मुनि खे चवन लगो -"हे नारद - इहो श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त जहीन रखी फल पतों आहे सा कथा मा तोखे बुधाया-तो ; तू ध्यान देई बुध ."

काशी शहर में शतआनंद नाले तमाम गरीब ब्रह्मण रवनदो हो ; जो वेचारो भुख में व्याकुल थी पेट पालन जे लाय रोज़ शहर जे गितीयूँ में धिखा खाईन्दो हो , मगर हुनते कहिनके भी दया कोन इंडी हुई , जो खानिरोटी टुकर धियेस . हुनजो अहिरो बुरो हाल दिसी श्री विष्णु भगवान खे हुनते दया आयी एन हिकरे दिंह बूढे ब्रह्मण जो रूप धरे हुन वत आयो एन पुछं लगो "हे ब्रह्मण - तू छो व्याकुल थी अहिरो दुखी गुजारे रहियो आहीं ? " शतानंद , बूढे ब्रह्मण खे कलावान दिसी चवन लगो "महाराज , माँ तमाम गरीब ब्रह्मण आयां . रोज पेट पालन जे ले शहर जे गितियूँ में भिख्या पिनन इंडो आया , मगर किस्मत का अहिरी अथं जो मू ते को भी दया नाथो आने . जियन पोए तियन दादों दुखी गुजारे रहियों आया . अगर को उपाय तवां खे सूझे त कृपा करे बुधयो . बूढे ब्रह्मण जे रूप में श्री विष्णु भगवन चवन लगो -"हे ब्रह्मण हिक उपाय आहे जहीन जे कारन सा तू हिना दुख खा छुटी सुखी गुज़रीनदे . सो ही आहे त तू श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रख एन हुनजी पूजा कर जो दिल घुरया मतलब पूरा कंदो आहे . शतानंद बूढे ब्रह्मण जी अहिरी गल बूढी पुछं लगो "उहो श्री सतनारायण स्वामी कहिरो आहे जहिनाजि पूजा एन विरत राखन सा मा हिना दुख मा लंघेय पर पवनदस ."

बूढे ब्रह्मण श्री सतनारायण स्वामी जि महिमा हिन् रीत वर्णन कई : "श्री सतनारायण स्वामी उहो आहे , जो अन्तरयामी हर ह्न्ध हाजिर हजूर , मन जी कामना पुरी कंदर , अब्नासी , पार ब्रह्म , सभनी जे कष्टं खे निवृत करन वारो कमला -पति आहे . उनजी तू सच्ची श्रद्धा सा पूजा कंदेयें एन विरत रखंदेय दुःखन खा छुटी , सुखी थिंदे . एत्रो चही , बुढो ब्रह्मण जो ख़ुद श्री विष्णु भगवन हो , शतानंद खे श्री सतनारायण स्वामी जे विरत रखन जी एन हुनजे पूजा पाठ जो नमूनों बुदाये हल्यो व्यो .

शतानंद ब्रह्मण घर अची इहा गाल पहिन्जे जाल खे चयें एन मन में पक्को निशचय क्यों सुबाहने कियं भी करे विरत रखंदासी . सझी रात खेस इनही चिंता में निंद कोना आयी . सुबह थीन्दय ही उथी स्नान पानी करे जाल खे चयें लेपो पाये घर खे शुद्ध कर छो जो अज असी श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रखंदा सी . इयें चयऐ बिख्या लाई झोली खनि बाहेर निक्तो . भगवान जे दया सा उन दिन हुन के बिख्या में अगे खा बिनो -चौनो धन मिल्यो सो खुश थी , श्री सतनारायण स्वामी जा गुना गाइंडो घर आयो . पोये पहिन्जेय मित्न मैयटन खे घुराए श्री सतनारायण स्वामी जो पूजन करे वेनती करन लगो "हे सचिदानन्द हे पारब्रहम - मा थोरी बुधि वारो तिन्जे शरण में आयो आयां . हे विष्णु भगवान - तू मिन्जा दुःख दूर कर . हे लक्ष्मीपति - तू मंजे मनजि कामना पुरी कर ."

अहिरी तरह पूजा करे विर्त छोरियाइन . आहिस्ते आहिस्ते उहो ब्रह्मण दुखन खा चूती धन पदार्थ पाए , सुखी गुजारण लगो . शतानंद , श्री सतनारायण स्वामी जे विर्त एन पूजा जो अहिरो प्रभाव दिसी , महीने महीने विर्त रखन लगो . आख़िर सभिनी पापन खा छुटी वनी मुक्त थियो .

श्री सुतजी महाराज , सौनिक आदि ऋषयो खे चवन लगो - हे ऋषयो - श्री विष्णु भगवान नारद मुनि खे चवन लगो -"हे नारद अहिरी तरह जेको मनुष्य श्री सतनारायण स्वामी जि पूजा करे विर्त रखे तो , सो अवश्य दुखन खा छुटी मुक्त थीन्दो ."सौनिक आदि ऋषि , श्री सुत्जी महाराज खे वेनती करन लगा "हे स्वामी तवा जेका कथा शतानंद जि बुधई सा बुधि दाडो खुश ठिया आयुं , मगर वधिका इहो पुच्छं घुरियूं शतानंद ब्रह्मण का सवाया बियो कहीं इहो विर्त रखियो , जहीन फल पाटो सो कृपा करे असान्खे वर्ण करे बुधायो ." इह गाल बुधि श्री सुत्जी महाराज खुश थी चवन लगो "हे ऋषयो - हिक्रो काथ्यर हुन्दो हो जो रोज़ जंगल मा काथ्यूं आने शहर में विकनि पेट जि पालना कंदो हो , सो विर्त रखी मुक्त कियं थियो , सा कथा मा तवां खे बुधाया तो - तविन ध्यान दई बुदो --- "हिक काथ्यर हुन्दो हो जो रोज़ काथियूं जी भरी माथे ते रखी शहर में वनी विक्रंदो हो . हिक दिन उहो ब्रह्मण सतानंद ब्रह्मण जे घर वतन लंग्यो . ब्रह्मण खे पूजा पाठ कांदो दिसी पुछां लगो - महाराज , ही तविन कहिन्जी पूजा करे रहिया आयो . काथ्यर जी इह गल बुधि ब्रह्मण चवन लगो त - मा श्री सतनारायण स्वामी जी पूजा करे रहियो आया , जो अन्न धन जे वधायं वारो , दुखन खा छ्दायन वारो , उहही दुःख भंजन मुखे अहिरे पथ ते आन्दो आहे . तू भी थोरो तरसी कथा बुधि एन प्रसाद वाथी हलयो वन . काथ्यर इह गाल बुधि दाडो खुश थी चवन लगो - श्री सतनारायण स्वामी कलयुग में सच्चो आहे मूते महिरा करे मा ही काथ्यूं विक्नी सुभाने ही श्री सतनारायण स्वामी जो विरत राखनदस एन पूजा पाठ करे श्री विष्णु भगवन खे प्रसन्न कंदस . अहिरो मन में विचार करे , प्रसाद वाथी , काथ्यूं जी भरी माथे ते खानी वाणी विक्याइन . भगवान जे दया सा खेस उनही भरी जा बीना पैसा मिलया , जो वथी खुश थी बाज़ार मा पूजा जो सामान वथी घर आयो . मिटन मायटन समेत श्री सतनारायण स्वामी जो विरत रखी , पहिन्जे बुधि अनुसार पूजा करे श्री विष्णु भगवान खे प्रसन्न क्यों . विर्त रखन जे प्रभाव सा उन्ही काथ्यर जू सभ मनो कामनायूं पुरियूं थियूं एन संसार जा सभ सुख भोगे वनि मुक्त थियो .

इथ श्री सिकंद प्राण जे रेवा खंड में श्री सत्यनारायण स्वामी जि कथा जो ब्यो अध्याय समाप्त थियो . सभई बोलो श्री सत्यनारायण स्वामी की जय , राजा राम चंद्र की जय , मुरली मनोहर कृष्ण भगवान की जय , सभी देवी देवताओं की जय .

अध्याय ट्यो

श्री सुत्जी महाराज सौनिक आदि ऋषियों खे चवन लगो हे ऋषयो - विष्णु भगवान नारद मुनि खे चवन लगो " मा तोखे बी कथा साधू नाले वान्ये जी टू बुधाया - जे ही विर्त बेस औलाद वर्तो पर विर्त naa रख्याये , आख़िर घाना ही दुःख डीसी विर्त रख्याये एन सुखी थियो ."

उल्कामुख नाले सत्यवादी रजा हुन्दो हो जो पहिनजे पतिव्रिता स्त्री पर्मुघदा सा गदजी बद्रशील नदी जे किनारे ते श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रखी श्रद्धा saa पूजा पाठ करे रहियो हो एतरे में हिक साधू नाले वान्यो घुमंदो फिरंदो अची उते निक्तो . रजा खे पूजा पाठ कांदो दिसी पुच्याईं "महाराज , ही तविन कहिन्जी पूजा करे रहिया आयो ?" रजा सौदागर खे चवन लगो टू मा ही पूजा औलाद जे वास्ते करे रहियो आया . श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रख्यो अथम जो अवश्य मंजी कामना पुरी कांदो ." साधू रजा खा इन्ही विर्त रखन जो नमूनों पुची चवन लगो तो मा गोठ वनि इहो विर्त ज़रुर रखनदस छोजो मुखे भी औलाद कोण आहे .

साधू रजा खा मोक्लाये थोरण दियां में अची पहिनजे गोठ पहुन्तो . घर अची इह गल पहिन्जे जाल लिलावंती सा करे चयायीं "असा ही विर्त तदहं रखंदासिं जदहीं असाखे को औलाद पैदा थिन्दो " इयें चयई थोरा दिन गुजारे , कहीं पास सफर ते हल्यो . थोरण दियन में भगवान जे कृपा सा लिलावंती गर्भवती थी . पूरे १० महीने खेस हिक सुपुत्री दीय जाई जहिंजो नालों कलावंती रख्यो वियो . साधू जदहीं सफर आयो तहिंके हिकरे दिन लिलावंती चयो "हे स्वामी - श्री सतनारायण स्वामी असांजी इच्छा पुरी कई आहे , सो छो कोण त विर्त रखियो ?" साधू चयो कुच्छ वक्त तरस कलावंती जो व्याह करे पोए विर्त रखनदासी .

कलावंती अज नंडि सुभान वडी आख़िर अच्छी विंह जे लायक थी . तदहं हिकरे दिंह साधू पहिन्जे घर ब्रह्मण खे कलावंती जे लायक वर जे जांच ले चय्यो . ब्रह्मण साधू जे चवन सा वर जी गोल्हा कन्दो कन्दो आख़िर अची कान्चिपुर में पहुन्तो . उते हिक सेठ जे पुट खे सुशील एन सुंदर दिसी पानसा वथी आयो . साधूखे इहो छोकरो पसंद आयो एन मूरो चिते ब्रह्मण जे हथां छोकरे जे मैतन खे मोक्लियो . थोरण दियन खा पोए सुख सा कलावंती जो विन्ह्या थी गुज्रियो . कुछ दीय पोए साधू नाथी समेत बेरियूं भराए वापर ले परदेस वनन जी तयारी कई .

विन्ह्या गुज़रण खा पोए भी साधू खे विर्त रखन खा बे - परवा दिसी श्री सतनारायण स्वामी मथेईस नाराज़ थियो . जदहीं साधू नाथी समेत रतनपुर में अच्ची पहुन्तो तदहं राजा चन्द्रकेतु जे महल मा चोर चोरी करे एन उहो चोरी जो माल उठे फितो करे बजी जिते साधू नाथी समेत तिक्यल हो .

चोरी जी ख़बर बुदंधे ही राजा चोरण जे पुथ्याँ सिफायुन खे भजयो . सिफाही गोलिन्देय गोलिन्देय आख़िर अची उन्ही साधू वत पहनता . साधू जे भरी सा चोरी थ्य्ल माल सुनातौं . वदिका शक जागन ते बिनी खे हाथ -कर्यूं हानि अची राजा जे दरबार में पेश कयों . राजा बिना का सोच विचार जे बिनी खे खनी जेल में मोक्लियो . हुनन घंयी पुकार्यो असी बे - दोही आयु पर श्री सतनारायण स्वामी जे नाराज़ थियंकरे राजा हुनन जी का भी गाल कोण बुधि . पान जेको धन माल हो सो भी सभ फुरे पान वाथ रखी चदयाई .

होधा साधू जे जाल एन दीय जा काहिरा बुरा हाल ठिया . जेको धन हो सो सभ चोर चोरी करे व्या . मा दीय दाडो दुखी गुजारण लागियू . हितं उतन तुक्र वती गुजारण कन्द्यू हुयू . हिकरे दिन के ब्रह्मण जे घर वायू . उहो ब्रह्मण श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रखी पूजा करे रहियो हो . उते वई कथा बुधयाऊ एन जेको प्रसाद मिल्यो सो खादाऊ . लिलावंती दीय खे चयो - तिन्जे जाएय जी श्री सतनारायण स्वामी जी सुखा रयल आहे जा पीने बासी हुयी . अलाय जे खा अहिर दुःख दिसी रहिया आयू . छो ना पान खनी सुभाने श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रख्यू . इयं चही बाई जनियू घर आयू एन बीए दिन मिट मैट घुराए विर्त रख्यायू . लिलावंती श्री सतनारायण स्वामी खा हाथ जोर बक्शाईं लगी "हे सचिदानंद हे अनाथन जा नाथ हे पार -ब्रहम , तू आसान ते दया कर . मंजे पति जो जेको दोह आहे सो हे श्री सतनारायण स्वामी तू बक्श . हू नाथी समेत सुख सा खती छुती घर अचे ."

श्री सतनारायण स्वामी लिलावंती जि अहिरी प्राथना ते दाडो खुश थियो . हिकरे दीय राजा चन्द्रकेतु खे सपने में चयी -"ही जेके वापारी जेल में चोरी जे तोहमत ते तोए विधा आहीं से बे -दोही आहीं . तू बिनी खे सुबहne सनदान मल समेत रवानो करे छड़ नुकसान कंदो सें ." सुबह थींदे ही राजा सपने वारी गल वजीर खे बुदाई , जे बिनी जनन खे जेल maa कड़ी स्नान पानी कराये ; सन दान जेको धन हो तहींका बीनो धन दई चवन लगो त "तवां जेको दुःख भोग्यो आहे सो प्रल्बुध जे करे भोग्यो आहे . इन्ही में असां जो को भी कसूर ना आहे . हाने तवं बई जन आजाद आयो. भले पहिन्जे गोठ हले वनो . हू बई जन खुश थी राजा खे हाथ जोरे नमस्कार करे सुख सा अच्ची पहिन्जे गोठ पहुनता.

इथ श्री सिकंद प्राण जे रेवा खंड में श्री सत्यनारायण स्वामी जि कथा जो त्यों अध्याय समाप्त थियो . सभई बोलो श्री सत्यनारायण स्वामी की जय , राजा राम चंद्र की जय , मुरली मनोहर कृष्ण भगवान की जय , सभी देवी देवताओं की जय .

अध्याय चौथों

श्री सुतजी महाराज , सौनिक आदि ऋषयो खे चवन लगो - हे ऋषयो - श्री विष्णु भगवान नारद मुनि खे चवन लगो -" ---इहे बई जाना सहूरो एन नाथी देसं जा देस घुमंदा , वापार मा नानो कमाइन्दा गोठ आया . जदीन गोठ जे वेजो अची पहनता तदिन विष्णु भगवान हुनान्जी आज़माइश वहतन लाई सन्यासी जो रूप धरे बेरी वथ अची पुचन लगो --- हे सौदागर तवं जी बेरी में छा पयाल आहे ; इन्ही maa मुखे कुछ दान दिंडा ? सौदागर धन जी मग्रूरी में चवन लगो ---"हे ब्रह्मण असंजी बेरी में कुछ कोने ; ही सभ कखा एन पाना आहीं . तू असांखे फुरण आयो आए छा? हनी इता हल्यो वां - आसान वत धन कोण आहे ."

सन्यासी रुपी विष्णु भगवान उनाजी अहिरी मग्रूरी एन निथार्ता दिसी चयो कूर कोने तिन्जो सभ चवन सच आहे . हिन बेरी में कखन एन पणन खा सवाई कुछ कोण रवंदो . इयें चही सन्यासी हल्यो वियो .

ज्दीन साधू बेरी हाकरण जो हुकुम दिनों तदिन बेरी हलकी दिसी वायरो थी वियो . जन अन्दर दिसं बराबर हिते कख एन पन लगा पया आहीं . धन माल जो नालों ही कोंहे . साधू इहो हाल दिसी बेहोश थी किरी पयो . नाठेस डोरी वतिस आयो एन होश में आने पुचन लगो "इतरे कदुर वियाकुल छो थीय आयो ?" साधू धन माल जी सझी गल करे बुदयीं जा बुधी संधस नाथी चययो त "इहो हिन् सन्यासी जे श्राप करे थियो आहे , हेलो हाली खेस बख्शायूं . " साधू नाथी समेत सन्यासी खे गोलन निक्तो . सन्यासी खे पर्यान दिसी , तक्रो तक्रो वधि अची संधस पेरण ते किरी पया एन ज़रोज़र रोई विर्लाप करे चवन लगा "हे स्वामी - असां ते खिम्य करो . असं डाधो अपराध कयो आहे जो तावान सा कूर गालायो अथम ."

उहो सन्यासी जो पान विष्णु भगवान् हो तहीं उननते दया आने चयो "मूर्ख साधू तू श्री सतनारायण स्वामी जे विर्त जी सुखा करे फिरी रहियो आहीं . हेतरा दुख भी इन करे दिसी रहियो आहीं ." साधू खे हने याद गिरी पाई बराबर ब दफा सुखा करे फिरयो आया सो शर्मिन्दो थी बक्षायन लगो "हे स्वामी बराबर मू अपराधी खा बुल थी आहे . हाने मूते दान आने मिन्जो धन मल जियन अगे हो , तिया कार्यो , मा गोठ वनी ज़रुर विर्त रखंदुस ."

सन्यासी साधू जी इह वेंती बुधी खुश थीय वयो एन मन घर्यो वर दई अंतर्ध्यान थी वयो . साधू बेरी ते अची दिसे अगे वन्गुर धन सा भरी पाई आहे . खुश थी बेरी हकले घर डान हल्यो . थोरण दियन खा पोए पहिनजे गोठ जे वेजोय अची पहुन्तो . हिक्रे नौकर खे अग्वत ख़बर दियन लाई घर मोक्लाई .

नौकर साधू जे स्त्री लिलावंती खे उनन जे अचन जी गल बुदाई . लिलावंती उन वक्त श्री सतनारायण स्वामी जी पूजा करे रही हुई , तहीं ज्दीन इह ख़बर बुधि सो झट -पट पूजा पुरी करे हाली आयी . कलावंती खे चवंदी वाई "दीय तू भी पूजा करे जल्दी बेरी tey अचजे ." कलावंती पहिन्जेय पति सा मिलन जे खुशी में जहिरी तहिरी पूजा करे प्रसाद छद्दे maa जे पुथ्य हाली वयी. कलावंती बेरी ते मस अची पहनती बेरी अची बुदन lagi. इहो हाल दिसी सभई अची रुअं पितन लगा . कलावंती बे -होश thi किरी पयी . मानस खेस उठारे होश में आने धीरज दें लगी .

साधू अहिरो हाल दिसी श्री सतनारायण स्वामी में यकीन एन विर्लाप आने चवन लगो "हे दीन बंधू असं जेके अगे जनम में या हिन् जनम में अहिर पाप कायन हजन बक्श . हे भगवान तू असां खे बचाए

इते आकाशवाणी थी तिन्जे दी-य श्री सतनारायण स्वामी जे प्रसाद जो अपमान कयो आहे . श्रद्धा सा उहो खायी ईंदी खेस पति मिलन्दो

कलावंती घर अची प्रसाद खायी बुल बख्शायं पोये बेरी ते अची पहिनजे पति जो दर्शन कयाईं . पोए त सभ गदजी खुश्यूं कंदा घर आया . साधू घर अची श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त वदे धूम -धाम सा रखयो . आख़िर संसार में सुख पाये , सभिनी पापन खा छुती वनी मुक्त थियो .

इथ श्री सिकंद प्राण जे रेवा खंड में श्री सत्यनारायण स्वामी जि कथा जो चौथों अध्याय समाप्त थियो . सभई बोलो श्री सत्यनारायण स्वामी की जय , राजा राम चंद्र की जय , मुरली मनोहर कृष्ण भगवान की जय , सभी देवी देवताओं की जय .

अध्याय पंजो

श्री सुतजी महाराज , सौनिक आदि ऋषयो खे चवन लगो - हे ऋषयो - श्री विष्णु भगवान नारद मुनि खे जेका राजा तुन्घध्वज जि कथा बुधाई हुई , जै प्रसाद जो निराधर करन करे दुःख पातो हो , सा कथा तवं ध्यान देई बुधो ."

तुन्घ्द्वाज नाले हिक्रो प्रजा -पालक राजा हुन्दो हो . हिकरे दिन शिकार कंडे कहीं बन में अची निक्तो , जिते ग्वाल pahinje कुटुंब समेत श्री सतनारायण स्वामी जो विर्त रखी वेठे पूजा कयाऊं . राजा पहिनजे अभिमान में श्री सतनारायण स्वामी खे नमस्कार भी कोण कयो , एन प्रसाद भी कोण वर्तायी . पहिनजे अभिमान में ही घोरे ते चरी घर दह हल्यो वयो .

परमेश्वर जी लीला अजीब आहे . तुन्घ्द्वाज राजा खे हिक सौ पुट हुआ , से सभ प्रसाद जे निराधार कारन करे मरी वय एन माल मिल्क्यत भी भस्म थी व्या . राजा ज्दीन इहो हाल दिठो तदहं दादों दुःख थियास . विचार करे मालूम कयाई ही दुःख कुरे अभिमान कारन करे प्राप्त थियो अथम जो श्री सतनारायण स्वामी जे प्रसाद जो निराधार कायम . राजा पच्तईन्दो उन वक्त घोरे ते चरी सग्ये हंध ग्वालन वत आयो . हाथ जोरे श्री सतनारायण स्वामी जे अजय बक्षायण लगो , पोए प्रसाद खाई श्रद्धा धरे , चरणामृत वथी घर आयो एन सभिनी पुतन जे वात में विधि . कुदरत इश्वर जी जो सभ उठी जीअरा ठिया एन धन पदारथ भी अगे वान्गुर थी पयो . राजा डाधो खुश थियो एन उन दिया खा वथी श्री सत्यनारायण स्वामी जो विर्त रखी पूजा पाठ कन्दो रहियो . आख़िर संसारी पदरथन जा सुखा भोगे वनी मुक्त थियो .

श्री सुत्जी महाराज सौनिक आदि रिष्यूं खे चवन लगो "हे ऋषयो ! श्री विष्णु भगवान् नारद मुनि खे चयो - श्री सत्यनारायण स्वामी जी कथा तोखे बुधायम जे जिनी rakhi तै फल पतों . कलयुग में ही विर्त जल्दी फल दियन वारो आहे एन अंत में वैकुण्ठ पहुचायन वारो थीन्दो आहे एन जेको ही विर्त सच्ची भावना सा रखंदो तहिंजो सभ मनो कामनाओं पुरी थींदु , अन्न धन जो वाधारो थीन्दो एन वंश वधंधो . घने वक्त तहीं दुनिया jaa सुख भोगे वाणी मुक्त थीन्दो . हे नारद जिन जिन विर्त रखी मुक्ति हासुल कई , तिन जे बये जनम जा नाला बुध . - शतानंद ब्रह्मण सुदामा जो जनम वर्तो जो श्री कृष्ण जो भगत थी मुक्त थियो . काठियर धीरज जो जनम वर्तो जो भीलन जो रजा thi एन श्री रामचंद्र जो भजन करे मुक्त थियो . उल्कमुख नाले राजा दसरत महाराज जो जनम वर्तो जो श्री रघुनाथ जे ध्यान धरे मुक्त थियो . साधू नाले वान्यो राजा मोरध्वज जो जनम वर्तो जहीन पहिन्जेय हाथ सा पहिन्जो अध शरीर करे सा चीरे श्री कृष्ण खे अर्पण करे मुक्त थियो . तुन्घ्द्वाज नाले राजा स्वभिमान्यू जो जनम वथी धरम पूर्वक राज हलाये मुक्त थियो , जे श्री सतनारायण स्वामी जे कथा जो पाठ करे तो अथवा बुदे तो सो संसार जे बन्धन खा छुटी मोक्ष पाए तो .

इथ श्री सिकंद प्राण जे रेवा खंड में श्री सत्यनारायण स्वामी जि कथा जो पंजो अध्याय समाप्त थियो . सभई बोलो श्री सत्यनारायण स्वामी की जय , राजा राम चंद्र की जय , मुरली मनोहर कृष्ण भगवान की जय , सभी देवी देवताओं की जय .

आरती

ॐ जय लक्ष्मी रमना , स्वामी जय लाष्मी रमना , सत्यनारायण स्वामी , जन पातक हरना , जय लक्ष्मी रमना

रतन जदत सिंघासन , अधभुत छबी राजे , नारद कहत निरंजन , घंटा धुन बाजे जय लक्ष्मी रमना .............

प्रघट भये कलि करन , ध्वज को दरस दिया बूढा ब्रह्मण बनके , कंचन महल किया जय लक्ष्मी रमना .............

दुर्बल भील कथियर , जन पर कृपा करे , चंद्रचूर इक राजा , जिनकी विपति हरि जय लक्ष्मी रमना .............

वयेश मनोरथ पायो , श्रद्धा उज दिनी सो फल भोग्यो प्रभुजी , फेर उस्टती किनी जय लक्ष्मी रमना .............

भाव भागती के कारण , छीन छिन रूप धरी शारदा धारण किनी , टिन का कर्ज सर्य जय लक्ष्मी रमना .............

ग्वाल बाल संग रजा , बन में भगती करे मन वंचित फल दिनों , दीन दयाल हरे जय लक्ष्मी रमना .............

चर्हत प्रसाद सवायो , कदली फल मेवा दूप दीप तुलसी Se, राजे सत देवा जय लक्ष्मी रमना .............

श्री सत्य नारायण जी की आरती जो कोई गावे कहत शिवानन्द स्वामी मन वान चित फल पावे जय लक्ष्मी रमना .............

Shri Vishnu Aarti

ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे .

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का .

सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ..

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी .

तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ..

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी .

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ..

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता .

मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ..

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति .

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ..

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे .

करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ..

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा .

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे .

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..

भोग

प्रभु तू भोजन कर अंगीकार भगवान भोजन कर अंगीकार तिन्जो दिनल मा तोखे ती अर्प्या (2)

भिलिनिया बेर चखे चखे अंडा (2) वथी विशम्बर तहिंजा तो खादा गद्लाई जो कयी गुमान (2) तिन्जो दिनल मा तोखे ती अर्प्या

जियन कर्मीय खानी किच्री आयी (2) कच्ची पक्की वाई तहिंजी खाई खरी फीकी कयी खंड जे समान (2) तिन्जो दिनल मा तोखे ती अर्प्या

धनी भगत जी रूखी सुखी रोटी (2) पकल परूथी तहिंजी रोटी स्वामी तहिंजो भी कयी सन्मान (2) तिन्जो दिनल मा तोखे ती अर्प्या (2)

लाये सुदामा जा दुःख एन दोखा (2) कच्चा चब्रिया चावर चोका सोना मंदार कयी मकान (2) तिन्जो दिनल मा तोखे ती अर्प्या (2)

जियन तो बयन सा कई आहे भलाई (2) राजी मू ते राम रघुराई खैजई मंजा मित्र भगवान (2) तिन्जो दिनल मा तोखे ती अर्प्या (2)

पलव

पायो पलव प्रेम सा, थिए भलो सभ जो राजा जो राज रहे कायम , प्रजा जो थिए कल्याण उन पानी जा थियाँ भण्डार ,जनिए तिलक जि जय थिए गौ एन Brahman जि रिख्या थिए पैन्चन ji जय थिए जहिंजी जहिरी मन जि मुराद उहा श्री सतनारायण स्वामी तू पूर्ण कर सभे ही बोलो श्री सतनारायण स्वामी की जय

अरदास

आश्वंदी गुरु तो दर आई , तुम बिन ठौर ना काई तू हर दाता तू हर माता , मेरी आश पूजी पए पलव मा परे प्यादी , आयास हेता मांझी तन मन धन अरदास करे में , मंगत नाम सनेही नाम तुम्हारा साबुन कर में , धोसन पाप सभई कहे टो गुरु लोक तीन में आव गमन मितायी

7 comments:

Unknown said...

Thnks its usefull for me

Unknown said...

Perfect Katha nd all

Unknown said...

Thank you very much

Vandana said...

Thank you

Unknown said...

Thanks🌹

Unknown said...

thanks moonkhe katha ghar m n hui iha gholi n padhi thanks a lot just hane poori thi

Unknown said...

Very useful